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Wednesday, 31 January 2018

अरुणिमा सिन्हा - यह हौसलों की उड़ान है


अरुणिमा सिन्हा का आरंभिक जीवन/Early life of Ms. Arunima Sinha
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में शहजादपुर, जिला अंबेडकर नगर, उत्तरप्रदेश में हुआ था | यह एक                लंबे और खिलाड़ियों जैसे  मजबूत शरीर वाली लड़की थी | बचपन में ही इनके  पिता का निधन हो गया              था | इन्हें बचपन से ही  बॉलीबाल  खेलने का शौक था | अपनी मेहनत और खेल के प्रति समर्पित                        भावना के कारण ही यह स्कूल से राष्ट्रीय स्तर तक की बॉलीबाल खिलाड़ी बनी |



जीवन की दिशा बदलने वाले पल / Turning point of life
अरुणिमा अपने उज्जवल भविष्य की ओर तेजी से बढ़ रही थी | लेकिन तभी एक ऐसी दुखद हृदयविदारक घटना हो गई जिसने उसके जीवन में एक भूचाल ला दिया | वह सी आई एस एफ में नौकरी प्राप्त करने की प्रक्रिया के तहत घर से दिल्ली की ओर पद्मावती एक्सप्रेस में रेल यात्रा कर रहे थी | तभी अचानक रेल में हथियारबंद लुटेरे गए  उन्होंने यात्रियों को आतंकित कर के उनसे  धन और आभूषण लूटने आरंभ कर दिए | लुटेरों के आतंक के कारण किसी भी यात्री द्वारा विरोध करने का साहस नहीं किया गया | लुटेरों ने अरुणिमा की सोने की चेन और पर्स लूटने का प्रयास किया | अरुणिमा ने इसका डटकर विरोध किया | लुटेरे एक लड़की से  पराजित हो रहे थे | लूटने में असमर्थ रहने के कारण झुँझलाहट  में  वह इस सीमा तक आग बबूला हो गए कि उन्होंने अरुणिमा को चलती  रेलगाड़ी  से बाहर फेंक दिया | अरुणिमा की रेलगाड़ी के नीचे आने के कारण टांग कट गई और वह पटरियों पर पड़ी कराहती रही | अरुणिमा का  दिल्ली के एम्स अस्पताल में लम्बे समय तक  इलाज   चला  | डाक्टर  अरुणिमा की जीवन की रक्षा करने में तो सफल हुए लेकिन वह अपनी एक टांग गवा  चुकी थी |  डॉक्टरों ने  कृत्रिम टांग लगा दी |

उज्ज्वल  भविष्य की ओर बढ़ने की यात्रा / Jorney towards bright future
सफलता के शिखरों की ओर बढ़ने की यात्रा
जीवन की इस भयानक त्रासदी से भविष्य के सुनहरे सपने चूर चूर हो गए थे | एक उड़ने वाले परिंदे के मानो पंख ही कट गए थे | एक खिलाड़ी के लिए विकलांग होने से बड़ा दुख क्या हो सकता है | सभी परिचित अरुणिमा का खिलाड़ी के तौर पर भविष्य समाप्त मानकर उसे सांत्वना दे रहे थे | ऐसे निर्णायक पलों में अरुणिमा ने अपना मनोबल कमजोर नहीं होने दिया और उसे स्वयं ही बढ़ाकर बुलंदियों तक पहुँचाया | उसने राष्ट्रीय ही  नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ बड़ा करने का निर्णय लेते हुए हिमालय के शिखर पर चढ़कर भारत का झंडा फहराने का निर्णय लिया | मानसिक रूप से वह तैयार थी शारीरिक रूप से भी उसने अपने को तेजी से इस महान उद्देश्य को पूरा करने  के लिए  तैयार करना शुरू किया | वह भारत की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री  पाल जिसने हिमालय के शिखर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की थी, से मिली और उन्हें अपने निर्णय के बारे में बताया | बछेंद्री पाल ने इस निर्णय को आत्मघाती बताया तथा मार्ग की बाधाएं बताते हुए पुनः विचार करने के लिए कहा | लेकिन अरुणिमा के दृढ़ निश्चय को देखकर अपना आशीर्वाद उसे दे दिया | बछेंद्री पाल की निगरानी में ही अरुणिमा ने पर्वतारोहण का कठिन प्रशिक्षण  लिया |


अपना प्रशिक्षण पूरा करके 31 मार्च 2013 को अरुणिमा ने अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की | दुर्गम पहाड़ियों और कठिन रास्तों को लांघते हुए वह 52 दिनों कि कठिन यात्रा के बाद 31 मई  2013 को एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचकर भारत का झंडा फहराने में कामयाब हुई | इस प्रकार वह एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली  विश्व की प्रथम दिव्यांग महिला पर्वतारोही बनने का गौरव प्राप्त कर स्की |

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